चाइल्ड कस्टडी की मामलों में बच्चे की इच्छा भी बहुत महत्वपूर्ण: सर्वोच्च न्यायलय

चाइल्ड कस्टडी की मामलों में बच्चे की इच्छा भी बहुत महत्वपूर्ण: सर्वोच्च न्यायलय

LegalKart Editor
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Last Updated: Apr 8, 2024

Case: Smriti Madan Kansagra v Perry Kansagra (Civil Appeal No. 3559/2020)

Section 17(3) of the Guardian & Wards Act 1890

17(3), the preferences and inclinations of the child are of vital importance for determining the issue of custody of the minor child. Section 17(5) further provides that the court shall not appoint or declare any person to be a guardian against his will".

Smriti Madan Kansagra v Perry Kansagra (Civil Appeal No. 3559/2020) केस जहाँ Guardian & Wards Act 1890  की धारा 17(3) को समक्ष रखते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ये माना की चाइल्ड कस्टडी की मामले में नाबालिग की इच्छा भी सामान रूप से महत्वपूर्ण है तथा उसकी वरीयताओं पर भी विचार किया जाना चाहिए खास कर जब वो एक ऐसे उम्र में हो जहां उसमे अपनी पसंद और नापसंद की बारे में पर्याप्त जानकारी हो तथा वो भी अपनी वरीयता की अनुसार चुनाव करने योग्य हो.

सुप्रीम कोर्ट की तीन जज की बेंच जिसमे न्यायमूर्ति यु यु ललित, न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा तथा न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता थे उन्होंने एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले में एक नाबालिग बालक की कस्टडी उसके पिता को प्रदान की जो की नैरोबी, केन्या  में रहते है।

यह क़ानूनी लड़ाई लगभग दस साल चली जिसमे आदित्य (वह नाबालिग बालक जिसकी कस्टडी की लिए ये केस था) की कस्टडी की लिए उसके माता पिता ने परिवार कोर्ट से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक ये कठिन कनूनी राह तय की तथा अंततः सुप्रीम कोर्ट ने आदित्य की सम्पूर्ण कस्टडी उसके पिता को प्रदत्त की।

यह जानना भी बेहद रोचक है की इस लम्बी और कठिन क़ानूनी लड़ाई की दौरान माननीय न्यायमूर्ति आदित्य से व्यक्तिगत रूप से अपने चैम्बर में कई बार मिले और यह जानने की कोशिश करी की आदित्य की व्यक्तिगत राय क्या है तथा उसकी वरीयता में उसके माता या पिता में उसकी अधिक नज़दीकी किसके साथ है। इस प्रकार की अनौपचारिक बातचीत से माननीय न्यायमूर्ति संतुष्ट हुए की बालक की समझ और वरीयता में वो अपने पिता से ज्यादा करीब था तथा उसकी इच्छा अपने पिता के साथ रहने की थी।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट तौर Guardian & Wards Act 1890 अधिनियम की धारा १७(३)  का उल्लेख किया तथा स्पष्ट किया की इस केस में बालक की भविष्य का फैसला इस प्रकार से होना चाहिए जो उसके भले के लिए सर्वोपरि हो तथा उसके सभी हितों की सम्पूर्ण रक्षा भी हो।

माननीय सुप्रीम को ने परिवार कोर्ट, हाई कोर्ट के फैसले तथा कौंसिलर की रिपोर्ट को भी बहुत गौर से परखा और पाया की बालक आदित्य ने अपने पिता की अधिक झुकाव दिखाया था। अपने फैसले को अंतिम रूप देते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बालक की हितों को सर्वोपरि मानते हुए उसकी संगरक्षण की ज़िम्मेदारी उसके पिता को सौंप दी। सुप्रीम कोर्ट का पूरा फैसला यहाँ से पढ़े।:

https://main.sci.gov.in/supremecourt/2020/8161/8161_2020_34_1501_24506_Judgement_28-Oct-2020.pdf